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त्वाद॑त्तेभी रुद्र॒ शंत॑मेभिः श॒तं हिमा॑ अशीय भेष॒जेभिः॑। व्य१॒॑स्मद्द्वेषो॑ वित॒रं व्यंहो॒ व्यमी॑वाश्चातयस्वा॒ विषू॑चीः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvādattebhī rudra śaṁtamebhiḥ śataṁ himā aśīya bheṣajebhiḥ | vy asmad dveṣo vitaraṁ vy aṁho vy amīvāś cātayasvā viṣūcīḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वाऽद॑त्तेभिः। रु॒द्र॒। शम्ऽत॑मेभिः। श॒तम्। हिमाः॑। अ॒शी॒य॒। भे॒ष॒जेभिः॑। वि। अ॒स्मत्। द्वेषः॑। वि॒ऽत॒रम्। वि। अंहः॑। वि। अमी॑वाः। चा॒त॒य॒स्व॒। विषू॑चीः॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:33» मन्त्र:2 | अष्टक:2» अध्याय:7» वर्ग:16» मन्त्र:2 | मण्डल:2» अनुवाक:4» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वैद्य विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (रुद्र) सर्वरोग दोषों के निवारनेवाले वैद्यराज ! आप हम लोगों को (वि,चातयस्व) विशेष कर जाँचें (त्वादत्तेभिः) आपसे दी हुई (शंतमेभिः) अतीव सुख करनेवाली (भेषजेभिः) औषधों से (विषूचीः) समग्र शरीर में व्याप्त (अमीवाः) रोगों को दूर करो, और आप (अस्मत्) हमसे हमारे (द्वेषः) वैरियों को वा ईर्ष्या आदि दोषों को और (वितरम्) विशेषता से उल्लंघन करने योग्य (अंहः) पाप भरे हुए कर्म वा कुपथ्यादि कर्म को दूर करें जिससे मैं (शतम्) सौ (हिमाः) संवत्सर आनन्द को (वि,अशीय) विशेष कर प्राप्त होऊँ ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे वैद्य लोगो ! तुम अत्युत्तम ओषधियों से सब के बड़े-बड़े रोगों को निवारण करके रागद्वेषों को और उन्माद आदि दोषों को अलग कर शतवर्ष आयु जिनकी ऐसे मनुष्यों को सिद्ध करो ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्वैद्यविषयमाह।

अन्वय:

हे रुद्र वैद्यराज त्वमस्मान्वि चातयस्व त्वादत्तेभिश्शंतमेभिर्भेषजिभिर्विषूचीरमीवा वियोजयेर्दूरे कुर्याः। त्वमस्मद्द्वेषो वितरमंहश्च वियोजय यतोऽहं शतं हिमा आनन्दं व्यशीय ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वादत्तेभिः) त्वया दत्तेभिः (रुद्र) सर्वरोगदोषनिवारक (शन्तमेभिः) अतिशयेन सुखकारकैः (शतम्) (हिमाः) संवत्सरान् (अशीय) प्राप्नुयाम् (भेजषेभिः) औषधैः (वि) (अस्मत्) अस्माकं सकाशात् (द्वेषः) द्वेष्टॄन् ईर्ष्यादीन् दोषान् वा (वितरम्) विशेषेण तरणीयमुल्लङ्घनीयम् (वि) (अंहः) पापात्मकं कर्म कुपथ्यादिकं वा (वि) (अमीवाः) रोगान् (चातयस्व) याचयस्व। अत्रान्येषामपीति दीर्घः (विषूचीः) समग्रशरीरव्यापकान् रोगान् ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे वैद्या यूयं अत्युत्तमैरौषधैः सर्वेषां महतो रोगान्निवार्य्य रागद्वेषोन्मादादिदोषाँश्च वियोज्य शतवार्षिकान्प्रायो जनान् कुरुत ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे वैद्यांनो! तुम्ही अत्युत्तम औषधीने सर्वात मोठमोठ्या रोगांचे निवारण करून रागद्वेषांना व उन्माद इत्यादी दोषांना दूर करून ज्यांचे आयुष्य शंभर वर्षे राहील अशी माणसे तयार करा. ॥ २ ॥